नासमझ साहस से बेहतर समझदारी वाला डर

आमतौर पर डर को जिंदगी में हर कामयाबी के बीच एक बड़ी बाधा माना जाता है। इसे मन को कमजोर करने वाली भावना कहा जाता है। लेकिन अगर दूसरे दृष्टिकोण से देखा जाए तो डर हमें सजग रहना भी सिखाता है, संभलकर चलना और योजनाबद्धे ढंग से आगे बढ़ना भी बताता है। मुश्किलों से जूझने की प्लानिंग का अहम हिस्सा ही नहीं, अनचाही स्थितियों से बचने से भी जुड़ा होता है डर, जो हमें सतर्क रहने के लिए प्रेरित करता है। जाहिर है, ऐसा होने पर कामयाबी पाना और आसान हो जाता है। बड़ी से बड़ी विपदा से जूझना आसान हो जाता है।

संक्रमण से डर है जरूरी

डर, सब कुछ सहेजते हुए विपत्ति से पार पाने में भी सहायक होता है। इन दिनों ऐसे ही कुछ हालात हैं। कोरोना क्राइसिस के दौर में जाने-अनजाने हो रही हर तरह की लापरवाही से डरना, जीवन सहेजने जैसा है। हाइजीन से लेकर मास्क पहनने, सैनिटाइजर के इस्तेमाल और फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करने को लेकर बार-बार सावधानी बरतने में कोई चूक होने से डरना जरूरी है। यह भय इस संक्रमण के विस्तार को रोकने और खुद को सेहतमंद रखने के लिए आवश्यक है। इन दिनों हम सभी को समझना है कि इस डर के आगे जीवन है।

भविष्य बनाता है सुरक्षित

'डर दूरदर्शिता की जननी है।' यह कहना है चर्चित लेखक थॉमस हार्डी का। असल में देखा जाए तो डर एक अलार्म की तरह होता है, जो उन हालातों में हमारे मन में बज उठता है, जब वर्तमान में कोई ऐसी गलती की जा रही हो, जो आज या आने वाले कल में हमें मुसीबत में डाल सकती है। यही वजह है कि डर हमें सजग रहना सिखाता है। जिंदगी के हर मोर्चे पर नियम-कायदों को मानने की अहमियत समझाता है। विवेकपूर्ण निर्णय लेने में भी मदद करता है। भय हमें हमारे आस-पास मौजूद हर जोखिम के प्रति सजग और सतर्क रखता है, जो आज ही नहीं आने वाले कल में भी हर तरह से हमारी सलामती से जुड़ा होता है। कोरोना आपदा के दौर में भी आने वाले समय के भयावह हालातों से बचने के लिए आज समझदारी दिखाना जरूरी है। इस संक्रमण की सेकेंड वेव कहीं ना कहीं, त्योहारी सीजन में बरती गई हम सबकी लापरवाही का ही नतीजा है। ऐसे में आगे के लिए अगर संक्रमण बढ़ने के डर से हम सब चेत जाएं तो हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा।

हालात-कारण समझना जरूरी

आमतौर पर हम निडरता के हर रूप को साहस समझते हैं, जबकि हालात हर बार एक जैसे नहीं होते। जैसे निडर होकर रहने-जीने के पीछे कुछ कारण होते हैं, वैसे ही डर के पीछे भी कोई न कोई वजह होती है। कई बार ऐसे कारण बेहद लॉजिकल होते हैं। ऐसे में इन कारणों को समझना जरूरी है। परिस्थितियों के मुताबिक व्यवहार करना, हर बार समझौता करना नहीं कहलाता है। कभी-कभी ऐसे एडजस्टमेंट से बढ़कर कोई दूसरी समझदारी नहीं हो सकती। महान दार्शनिक प्लेटो का कहना है कि 'साहस यह जानना है कि किससे नहीं डरना है,' जिसका सीध-सा अर्थ है कि हौसलेमंद होने के नाम पर हर चीज से नहीं टकराया जा सकता है। इस विपदा में भी जो हालात बने हुए हैं, उसमें हमें इन स्थितियों के मुताबिक अपनी और दूसरों की जिंदगी बचाने में भागीदार बनना ही होगा।

प्राथमिकताएं भी करता है तय

डर हमारी जिंदगी के कई जरूरी पहलुओं से जुड़ा होता है। इनमें अपनी और अपनों की सेहत और सुरक्षा, करियर से जुड़े सपने, अपने समाज से जुड़ाव का भाव और भविष्य की बेहतरी सबसे अहम हैं। इस महामारी में सवाल खुद अपनी और अपनों की ही नहीं पूरी दुनिया की जिंदगी से जुड़ा है, तो यकीनन डरना जरूरी है। संक्रमण से बचाव की बात हो या इंफेक्शन से उबरने के बाद भी खुद या किसी अपने की सेहत संभालने की सतर्कता, हम जिन हालातों में हैं, उनमें लड़ना सिखाता है डर। इतना ही नहीं आज के रेडीमेड इनफॉर्मेशन के दौर में डर हमें सही और सटीक सूचनाएं जुटाने में भी मददगार है। डर का डोज हमें किसी सूचना पर भरोसा करने या किसी इलाज से जुड़ी किसी एडवाइस को आंख बंद कर फॉलो करने के बजाय, सटीक जानकारी जुटाने में मदद करता है यानी डर फोकस्ड रखता है। इस संकट ने भी हमें अपनी प्राथमिकताओं से फिर मिलवाया है। परिवार और सेहत को प्राथमिकता देने की सीख दी है। इसीलिए सरकारी गाइडलाइंस को फॉलो करना और यह समझना जरूरी है कि कायदे में रहने में ही फायदा है।

डर के पॉजिटिव इफेक्ट

हालांकि डर को एक नेगेटिव इमोशन माना जाता है, लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक मन में जब डर के भाव उभरते हैं तो एड्रेनेलीन और सेरोटोनिन हारमोंस निकलते हैं। सेरोटोनिन, हमारे दिमाग को अधिक कुशलता और सजगता से काम करने में मदद करता है। यह एक तरह की पॉजिटिव एनर्जी है, जो हमें अवेयर बनाए रखती है। मिसाल के तौर पर पार्क में दौड़ते हुए, सड़क पार करते हुए, ऊंचाई से झांकते हुए या एग्जाम-इंटरव्यू देते हुए मन में एक तरह का डर यानी अवेयरनेस रहती है। तभी ऐसा भय, हमें संभल कर चलने, सधकर दौड़ने और सोच-समझकर बोलने के प्रति अवेयर रखता है। डर के इसी पॉजिटिव इफेक्ट के कारण ही हम अपने परिवेश से जुड़ते हैं, सोशल बनते हैं और कम्युनिटी के लेवल पर सोचते हैं। अपनी ही नहीं, दूसरों की परेशानी भी समझ पाते हैं। कोरोना के वर्तमान ग्लोबल संकट के समय हमें अपने भीतर, डर के इसी पॉजिटिव इफेक्ट को और डेवलप करना है। इसके लिए हर हाल में ऐसे विचार या व्यवहार से बचना है, जो निडर होने के नाम पर हमसे जानलेवा गलतियां करवाए। यह बेवजह बहादुरी दिखाने या गाइडलाइंस की अनदेखी करने का समय नहीं है, समझदारीपूर्ण डर के साथ जीने का दौर है।



नासमझ साहस से बेहतर समझदारी वाला डर नासमझ साहस से बेहतर समझदारी वाला डर Reviewed by HealthTak on December 24, 2020 Rating: 5

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