Know What Is Mystry Behind Kanipakkam Vinayak: भारत के साथ ही विदेश में भी प्रथम पूजनीय भगवान गणेश के कई रूपों के मंदिर स्थापित हैं। इसके बावजूद आंध्र प्रदेश में मौजूद कणिपक्कम विनायक मंदिर गणपति बप्पा के अन्य मंदिरों से कुछ जयादा खास है। कणिपक्कम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित बप्पा की प्रतिमा को हर साल नया कवच पहनाया जाता है। अब सुनने में शायद यह बहुत ही आम बात लग रही है, लेकिन इसके पीछे बहुत बड़ा रहस्य छिपा हुआ है। गर्भगृह में बहुत से अलग-अलग आकार के कवच रखे हैं। मान्यताओं के मुताबिक, स्वयंभू गणेश की इस मूर्ति की खासियत इसका आकार बढ़ना है। लोगों का मानना है कि जैसे-जैसे मूर्ति का आकार बढ़ता है, वैसे ही पुराने कवच छोटे पड़ते जाते हैं और भगवान गणेश के कवच को हर साल बदला जाता है।
जानिये कणिपक्कम विनायक मंदिर का रहस्य
ऐसा कहा जाता है कि स्वयंभू गणेश यहां आने वाले हर इंसान के विघ्नों को हर लेते हैं। आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) का यह प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर आस्था और चमत्कार की ढेरों कहानियां अपने अंदर समेटे हुए है। मंदिर के गर्भगृह में जगह के कारण हो रही समस्या की वजह से हर किसी को यहां जाने की अनुमति नहीं मिलती है। लोगों को हो रही इस असुविधा को देखते हुए मंदिर परिसर में बने एक तालाब के बीचो-बीच भगवान गणेश की गर्भगृह मंदिर वाली प्रतिमा की प्रतिमूर्ति स्थापित की गई है। इस तरह अंदर ना जा पाने वाले श्रद्धालु प्रतिमा के दर्शन बाहर से ही कर सकते हैं। ऐसा दावा किया जाता है कि पिछले करीब 70 साल में ये प्रतिमा 2 फीट से ज्यादा बढ़ चुकी है। इसके साक्ष्य के रूप में आप मंदिर प्रांगण में रखे हुए कवच भी देख सकते हैं, जो प्रतिमा के बढ़ते आकार के कारण बदले गए हैं। बता दें कि कौन-सा कवच किस साल का है, यह कवच के पास रखी एक पट्टिका पर लिखा गया है।
जानिये कणिपक्कम विनायक मंदिर का इतिहास
आपको जानकर हैरानी होगी कि कणिपक्कम विनायक मंदिर में स्थापित गणपति की प्रतिमा का आकार इस समय पर 4 फीट और कुछ इंच है। हालांकि, जब यह प्रतिमा प्रकट हुई थी, उस समय यह बहुत छोटी थी। उतनी ही छोटी जितनी मंदिर प्रांगण में स्थित कुंड के बीच रखी प्रतिमा है। भगवान की इस प्रतिमूर्ति का साइज वही रखा गया है, जो प्रकट होने के समय वास्तविक मूर्ति का था। लोग कहते हैं कि इस मंदिर में मौजूद विनायक की मूर्ति का आकार हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। इस बात से आपको भी हैरानी हो रही होगी, लेकिन यहां के लोगों का मानना है कि प्रतिदिन गणपति की इस मूर्ति का पेट और घुटना बढ़ रहा है। बता दें कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में चोल राजा कुलोठुन्गा चोल प्रथम ने करवाया था और बाद में फिर विजयनगर वंश के राजा ने सन 1336 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया था।
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