
हाल में यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन और बायोटेक फर्म गुबरा के शोधकर्ताओं ने एक नया इंसुलिन अणु विकसित किया है, जिससे आगे चलकर यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मधुमेह रोगियों को इंसुलिन की सही मात्रा प्राप्त हो। बाजार में उपलब्ध इंसुलिन यह निर्णय नहीं कर पाता कि टाइप 1 डायबिटीज के मरीज को इंसुलिन से होने वाले प्रभाव की किस हद तक आवश्यकता है, जिससे कि शुगर को नियंत्रित किया जा सके?
इस अध्ययन के शोधकर्ता दल के सदस्य प्रोफेसर नुड जे. जेनसन (रसायन विभाग, कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी) के अनुसार, 'हमने इस प्रकार के इंसुलिन की दिशा में पहला कदम बढ़ाया है, जो एक मरीज के रक्त शर्करा के स्तर के अनुसार स्वयं को समायोजित कर सकता है। इससे टाइप 1 मधुमेह वाले लोगों के जीवन में व्यापक सुधार करने की जबरदस्त क्षमता है।'
अंतर्निर्मित आणविक-बंधन वाला यह अणु, रोगी के शरीर में पहले शुगर लेवल को समझता है और जैसे ही यह लेवल बढ़ता है, अणु अधिक सक्रिय हो जाता है और अधिक इंसुलिन जारी करता है। जैसे-जैसे ब्लड शुगर कम होता है, वैसे-वैसे कम सक्रिय हो जाता है। यह अणु इंसुलिन की एक छोटी मात्रा को लगातार रिलीज करता है, लेकिन जरूरत के अनुसार बदलता रहता है। इससे टाइप 1 मधुमेह के रोगियों को एक सुरक्षित और आसान ट्रीटमेंट मिल पाएगा। वर्तमान में टाइप 1 मधुमेह के रोगियों को कई बार इंसुलिन का इंजेक्शन लेते रहना पड़ता है और साथ ही ब्लड सैंपल लेकर बराबर अपने रक्त शर्करा की मात्रा की भी निगरानी करनी होती है। इस नए अणु का आरंभिक टेस्ट चूहों पर प्रभावी पाया गया है। हालाँकि इसको पूरी तरह विकसित होने में अभी समय लगेगा लेकिन एक आशा की किरण तो मिल ही गई है।
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