क्यों ब्रांडेड दवाइयों के मुकाबले 60 से 65 प्रतिशत सस्ती हैं जेनेरिक दवाएं, भारत सरकार किस वजह से कर रही समर्थन
Generic And Branded Medicine: भारत (India) में जनसंख्या बहुत ज्यादा है और लगातार खतरनाक तरीके से बढ़ भी रही है। ऐसे में हमारा हेल्थकेयर डोमेन विकसित देशों की तुलना में ज्यादा सक्षम नहीं है। देश की स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार के लिए ही केंद्र सरकार (Central Government) ने जेनेरिक दवाओं (Generic Medicines) क्यों ब्रांडेड दवाइयों (Branded Medicines) के मुकाबले 60 से 65 प्रतिशत सस्ती है जेनेरिक दवाएं, भारत सरकार (Indian Government) इस वजह से कर रही इनका पुरजोर समर्थन) को बढ़ावा देना शुरू किया है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जेनेरिक दवाएं कम कीमत पर उपलब्ध होती हैं और इससे हमें अपने देश के स्वास्थ्य क्षेत्र का लाभ उठाने में मदद मिलती है। लेकिन जेनेरिक दवाओं को लेकर देश की जनता में अक्सर संशय बना रहता है, हमारे दिमाग में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि जेनेरिक दवा हमारे बजट में क्यों आती है? क्या दवा को बनाने में इस्तेमाल हुई चीजों की क्वालिटी के साथ कोई समझौता किया गया है? या इन दवाओं को केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है? आपके इन सभी सवालों के जवाब हम आज के इस आर्टिकल में देने वाले हैं। आपके सवाल का जवाब देने के लिए हमे जेनेरिक दवाओं के बनने की प्रक्रिया को समझना होगा।
देश की जनता को जेनेरिक दवाओं पर भरोसा क्यों नहीं?
2 साल पहले दुनियाभर में कोरोना वायरस नाम की महामारी का आतंक फैला हुआ था। लोग अपनी जान गंवा रहे थे, हर तरफ त्राहि का माहौल था। कोई समझ नहीं पा रहा था, इस बीमारी से बचाव कैसे किया जाए। ऐसे में डॉक्टर्स और मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोग भगवान् की तरह हम सभी के सामने आए। इस समय में डॉक्टरों की सहायता से बहुत लोगों की जान बच पाई, लेकिन यह बीमारी इतनी जानलेवा बनी क्योंकि इससे बचाव के लिए पूरी दुनिया में कहीं कोई वैक्सीन या दवाई ही नहीं थी। बता दें कि जब भी किसी नयी तरह की बीमारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लेती है, तो उसकी दवाई बनाने में बहुत ही रिसर्च, पैसा और टाइम लगाना पड़ता है। अगर राउंड ऑफ के फिगर की बात करें तो दवाई बनाने की इस प्रक्रिया में तकरीबन 2.6 बिलियन डॉलर तक बहुत ही आराम से खर्च हो जाते हैं। यहां समझने वाली बाते यह है कि इतने पैसे, रिसोर्सेज और टाइम को लगाने के बाद भी इस बात की कोई गारेंटी नहीं होती की दवाई बन ही जाएगी। एक छोटी सी गलती आपकी पूरी महनत पर पानी फेर सकती है। ऐसे में जो भी कंपनी किसी नयी बीमारी से बचाव के लिए दवाई बनाने में कामयाब हो जाती है तो वो इस दवा के राइट्स को पेटेंट करवाती है।
जानिए क्यों ब्रांडेड दवाइयां करती हैं पेटेंट का इस्तेमाल
अब बात अगर पेटेंट की करें तो इसका मतलब होता है कि आपके द्वारा बनाई गयी चीज को दुनिया में और कोई बना नहीं सकता है। अगर कोई ऐसा करता है तो उस पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। ऐसे में दावा कंपनियों द्वारा अपने प्रोडक्ट को पेटेंट करवाने की पीछे बहुत बड़ी वजह होती है। जैसा की हमने आपको बताया, किसी भी दवाई को बनाने के लिए कंपनी को बहुत सी लागत, समय और रिसोर्स का इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि कंपनी को अपने काम और मेहनत का मुनाफा मिल सके, इसलिए नयी दवा को कोई और कंपनी नहीं बना सकती है। पेटेंट की वजह से मार्किट में प्रोडक्ट की मांग बहुत अधिक होती है और आपूर्ति लिमिटेड इसलिए इन ब्रांडेड दवाओं का दाम काफी ज्यादा होता है। बता दें कि पेटेंट की अवधि तकरीबन 20 साल की होती है और इसके बाद अन्य कंपनियां भी उस दवाई को बनाना शुरू कर देती हैं। इन कंपनियों को ये दवाई बनाने में रिसर्च और पैसे की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। क्योंकि उस दवाई का निर्माण पहले ही हो चुका होता है। यही वजह है कि ये जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों के मुकाबले 60 से 65 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं।
जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी में नहीं होती कोई कमी
देशभर में जेनेरिक दवाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा बहुत अहम कदम उठाए जा रहे हैं। जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) स्टोर खोले जा रहे हैं। यह दवाओं पर होने वाले खर्च को भी कम करता है और इस तरह प्रति व्यक्ति उपचार की इकाई लागत कम हो जाती है। शायद यह हमारे देश के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए गेम-चेंजर हो सकता है। आपको ये जानकार हैरानी होगी, भारत विश्वभर में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है। इसके बावजूद हमारे ही देश की जनता को जेनेरिक दवाइयों पर विश्वास नहीं है। जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी में कोई कमी नहीं होती है, इसकी महज कंपनी अलग होती है। वहीं सबसे अहम बात ये है कि भारतीय बाजारों में कोई भी दवाई बिना जांच किये नहीं उतारी जाती है। ऐसे में जेनेरिक दवाइयों को फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (Food and Drug Administration) से मंजूरी मिली हुई है। इसलिए इनकी क्वालिटी पर संदेह करने का सवाल ही नहीं उठता है।
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