What is Niyog Pratha: भारतीय संस्कृति और शास्त्रों में ऐसी बहुत सी बातें हैं, जिनके बारे में समाज का एक बड़ा तबका नहीं जानता है। हिन्दू समाज में ऐसी ही एक प्रथा है, जिसका नाम नियोग प्रथा है। इसके बारे में आप पौराणिक कथाओं, सिनेमा और ऐतिहासिक ग्रंथों में पढ़ और देख सकते हैं। ऐसे बहुत से लोग होंगे, जो इस प्रथा के बारे में जानते होंगे, लेकिन कई लोग नहीं जानते हैं कि नियोग प्रथा क्या होती है। दरअसल इस रिवाज के मुताबिक अगर किसी महिला के पति की असमय मृत्यु हो जाती है या वह संतान उत्पन्न करने में असमर्थ होते हैं तो वह महिला अपने देवर से गर्भाधान कर सकती है। आइए अब जानते हैं कि आखिर ये प्रथा है क्या?
क्या है नियोग प्रथा?
मनुस्मृति के मुताबिक नियोग प्रथा में पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में स्त्री अपने देवर अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। लेकिन इस प्रथा का सबसे अहम नियम यही होता है कि स्त्री संतान प्राप्ति के लिए ऐसा कर सकती है। अपने आंनद के लिए नहीं, साथ ही इस प्रथा को तभी किया जा सकता है, जब स्त्री को कोई संतान न हो।
व्यक्ति को समाज में मिलता है ज्यादा सम्मान
कुछ प्रचलित कथाओं के मुताबिक, 'जब स्त्री के पति की असमय (विवाह के 4–6 बरस के भीतर) मृत्यु हो जाए और उस व्यक्ति का कोई अविवाहित छोटा भाई है, तो उसका विवाह विधिपूर्वक उसकी भाभी से कर दिया जाता है। इसे नियोग प्रथा कहते हैं। इस प्रथा को अपनाने वाले व्यक्ति का समाज में सम्मान और अधिक बढ़ जाता है।
महाभारत में भी इस प्रथा का जिक्र
महाभारत काल में भी नियोग प्रथा का पालन किया गया था। 'प्राचीन काल में पति के संतान पैदा करने में अक्षम रहने अथवा जीवित न रहने पर, वंश को आगे बढ़ाने के लिए पत्नी किसी अन्य से संबंध बनाकर संतान उत्पन्न किया करती थी। इसका उदाहरण महाभारत ग्रंथ में मिलता है, जहां गंगा पुत्र भीष्म के कभी विवाह न करने और ब्रह्मचर्य का पालन करने की कसम खाने के कारण उनके पिता शांतनु का विवाह मत्स्य सुंदरी सत्यवती से हुआ था। इसमें यह शर्त थी कि सत्यवती का पुत्र ही राजगद्दी पर बैठेगा।'
नियोग प्रथा से जुड़े कुछ अहम नियम
नियोग का पहला और अनिवार्य नियम है कि कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए। नियोग में शरीर पर घी का लेप लगाया जाता है, ताकि पत्नी और नियुक्त पुरुष में वासना जागृत न हो। इस प्रथा का दुरुपयोग न हो, इसलिए पुरुष अपने जीवन काल में केवल 3 बार नियोग का पालन कर सकता है। नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका उद्देश्य केवल महिला की संतान प्राप्ति में मदद करना होगा। इस प्रथा से जिस बच्चे का जन्म होगा, उसे वैध माना जाएगा। वह बच्चा कानूनी रूप से पति-पत्नी का बच्चा होगा, न कि नियुक्त पुरुष का। साथ ही, भविष्य में वह नियुक्त पुरुष बच्चे पर अपना अधिकार नहीं जता सकता है।
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